शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस में नहीं रहे, उनकी दबाव की राजनीति चली नहीं



यह अटकलें तो काफी दिनों से लगाई जा रही थीं कि गुजरात कांग्रेस के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला न केवल अपनी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं, बल्कि वे भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। अब इसमें से एक अटकल सही साबित हो गई है। उन्हें चाहे कांग्रेस से निकाल दिया गया हो और चाहे उन्होंने पार्टी को स्वयं छोड़ दिया हो, पर वे अब कांग्रेस में नहीं रहे। शुक्रवार को गांधीनगर में अपने जन्मदिन समारोह में यह उन्होंने ही कहा कि कांग्रेस ने उन्हें निकाल दिया है। उन्होंने भाजपा में न जाने की बात भी कही। जो भी हो, मगर कांग्रेस ने उन्हें निकालने की फिलहाल तो कोई घोषणा नहीं की है। जो कुछ कहा, वह वाघेला ने ही कहा है। सो, ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इसे उनका राजनीतिक स्टंट ही मानकर चल रहे हैं। यह तो सही है कि गुजरात में कांग्रेस बेहद कमजोर है। उसके पास नेताओं का अकाल है और कार्यकर्ताओं का भी। जो नेतागण उसके पास हैं, वे आपस में लड़ भी रहे हैं। इस कमजोरी के बाद भी माना यही जा रहा है कि यदि कांग्रेस ने वाघेला को निकाला होता तो वह इसकी विधिवत घोषणा करने से डरती नहीं।
लिहाजा, राजनीति के जानकारों को लगता है कि वाघेला अब भी दबाव की राजनीति ही कर रहे हैं। वे निकाले गए हैं या नहीं, इसका जवाब तो तब तक नहीं मिलेगा, जब तक कांग्रेस स्वयं स्थिति को साफ नहीं करेगी। मगर वाघेला दबाव की राजनीति करते रहे हैं। बहरहाल, इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजनीति में चतुराई का भी अपना एक महत्व होता है। जो नेता जितना ज्यादा चतुर होता है, राजनीति में वह उतना ही कामयाब भी होता है। मगर चतुराई की भी एक सीमा होती है। वाघेला इसी सीमा को लांघ जाते हैं। जब वे भाजपा में थे, तो कभी केशुभाई पटेल के साथ हो जाते थे, तो कभी उनके विरोध में। उस समय वे सिर्फ इसीलिए कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ाते दिखते थे कि भाजपा उनके दबाव में आकर उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बना दे। जब उनकी यह चतुराई चली नहीं, तो अंतत: वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
यहां आकर भी उन्होंने अपने वही राजनीतिक तीर चलाए, जो पहले ही बेमतलब के साबित हो चुके थे। इसी वर्ष अंत में गुजरात में चुनाव होना है। अत: आजकल वे कुछ ज्यादा बेचैन थे। वे यह चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना दे। इसके लिए उन्हें पार्टी के नेताओं को भरोसे में लेना चाहिए था, मगर वे करते यह थे कि स्वयं को भाजपा के नजदीक खड़ा कर देते थे। इससे कांग्रेस सतर्क होती और उनसे ज्यों ही मीठी वाणी बोलती, तो वे भाजपा पर बयानों के तीर चलाने लगते थे। उन्होंने इस राजनीतिक खेल की पिछले सात-आठ महीनों में कई बार पुनरावृत्ति की। सो, कांग्रेस ने अपनी और भाजपा ने अपनी जगह समझ लिया कि वे इस नहीं, तो उस दल से केवल मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के चक्कर में हैं। इसी चतुराई का नतीजा अब वाघेला के सामने है। न उनका दबाव कांग्रेस पर चला, न ही भाजपा पर।

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