राष्ट्र से प्रेम करने की मनाही किसी भी धर्म में नहीं



उत्तरप्रदेश की योगी सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर मदरसों में तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान गाने को लेकर बरेलवी और देवबंदी आमने-सामने आ गए हैं। बरेली की दरगाह आला हजरत ने जन-गण-मन और राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाने से इंकार किया है। आला हजरत दरगाह में राष्ट्रगान की जगह सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा का तराना गूंजेगा। देवबंद के दारुल उलूम ने आला हजरत के बयान को नकार दिया है। देवबंद का कहना है कि पहले राष्ट्रगान को समझें और फिर बयानबाजी करें। बरेलवी का कहना है कि राष्ट्रगान में भारत को भाग्य विधाता बताया गया है, जबकि इस्लाम में अल्लाह को भाग्य विधाता माना जाता है। इसी प्रकार जय हो-जय हो कहने की भी इजाजत इस्लाम नहीं देता। जबकि देवबंद का मानना है कि राष्ट्रगान में जनगण यानी आम आदमी को भारत का रहनुमा कहा गया है, न कि भारत को जन गण का विधाता या भगवान। राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण दिखाने का जरिया बने राष्ट्रगान को लेकर इस समय जिस तरह से विवाद व बहस का आलम है, वह ठीक नहीं है। योगी सरकार के फैसले का सार किसी पर जबरदस्ती राष्ट्रप्रेम थोपना नहीं है, बल्कि देश के सभी नागरिकों को राष्ट्ररूपी माला में पिरोने का जरिया मात्र है।
राष्ट्रगान गाने या तिरंगा फहराने को लेकर देश में बने माहौल पर कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी काफी सटीक थी। सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान अनिवार्य करने संबंधी आदेश देते समय कोर्ट ने कहा था कि ‘आजकल लोगों को पता नहीं कि राष्ट्रगान कैसे गाया जाता है और लोगों को यह सिखाना होगा।’ कोर्ट की यह टिप्पणी भी नागरिकों में राष्ट्र के प्रति आदर जागृत करने वाली थी, न कि थोपने वाली। देखा जाए, तो राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान जैसे प्रतीकों का संबंध राष्ट्र की अस्मिता से है। इसलिए 1976 में जब नागरिकों के कर्तव्यों से जुड़ा भाग भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, तो सभी भारतवासियों से सम्मान करने की अपेक्षा उसमें शामिल की गई। चूंकि, संविधान में ही मिले अधिकारों की वजह से भारतीयों ने राष्ट्रगान गाने और न गाने से खुद को अलग कर लिया था, इसीलिए यह मुद्दा बाद में नागरिकबोध से ज्यादा धार्मिक हो गया, जो अब बेहद मूढ़ रूप ले चुका है।
सिनेमा हॉलों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने संबंधी फैसला देते समय कोर्ट ने सवाल उठाया था कि मनमानी की इजाजत किसी को क्यों होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अब वक्त आ गया है कि नागरिकों को समझना होगा कि यह उनका देश है। उन्हें राष्ट्रगान का सम्मान करना होगा, क्योंकि यह संवैधानिक देश भक्ति से जुड़ा मामला है। योगी सरकार का फैसला भी इसी संदर्भ से जुड़ा है। मदरसों में पढ़ाई कर रहे बच्चों को अगर राष्ट्रप्रेम से जुड़ने का एक अवसर मिल रहा है, तो किसी को इसके आड़े नहीं आना चाहिए। आजादी का दिन देश के प्रति आदर दिखाने का है, न कि किसी देवी-देवता की वंदना का। इसलिए मदरसों में राष्ट्रध्वज फहराने या राष्ट्रगान का विरोध सिर्फ स्वार्थपूर्ति के लिए करना गलत है।

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