स्कूलों में बच्चों की पिटाई को लेकर चिंता तो जताई, लेकिन इस दिशा में किसी ने कदम नहीं उठाया



कहावत है कि किसी भी अच्छे शिक्षक को अपने विद्यार्थी बहुत याद आते हैं, लेकिन विद्यार्थियों को अच्छे शिक्षक जीवनर्पयत याद रहते हैं, क्योंकि वे बच्चों को जीवन के हर मोड़ पर आगे बढ़ते रहने का हुनर सिखाते हैं, लेकिन दुखद बात यह है कि पिछले कुछ सालों में स्कूलों में बच्चों को मारने व पीटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे में शिक्षकों की छवि को भी नुकसान पहुंचा है, इसे विडंबना ही कहिए कि कुछ शिक्षक बावजूद इसके समझ नहीं पा रहे हैं। देश में कड़ा कानून बन जाने के बाद भी किसी न किसी हिस्से में प्रत्येक दिन ऐसी घटनाओं का घटित होना बहुत ही चिंता की बात है। हाल ही में उत्तरप्रदेश के एक स्कूल का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें शिक्षिका एक बच्चे के गाल पर थप्पड़ बरसा रही थी। बच्चे का कसूर यह था कि अटेंडेंस के दौरान वह ड्राइंग कर रहा था। इस वजह से वह ‘यस मैडम’ नहीं बोल पाया। बस इसी से नाराज होकर उस टीचर ने बच्चे के गाल पर 40 थप्पड़ मारे।
इसी तरह गाजियाबाद के एक छात्र को स्कूल में पेंसिल लेकर न जाना भारी पड़ गया। नाराज शिक्षक ने उस छात्र को करीब आधा घंटा मुर्गा बनाकर रखा और इसके बाद छात्र के कान पर जोरदार थप्पड़ मारा। इससे छात्र के कान का पर्दा फट गया। उधर, हैदराबाद के एक स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्र को सजा के तौर पर लड़कों के टॉयलेट में खड़ा कर दिया गया, जिससे वह डिप्रेशन में चली गई। गौरतलब है कि स्कूल में बच्चों को दंडित करने के लिए कई और तरीके भी अमल में लाए जाते हैं, जिनमें होमवर्क न करने पर सजा देना, स्केल से पीटना, छात्र की चोटी या बाल खींचकर मारना, स्कूल में सफाई न करने पर मारना, पढ़ाई के दौरान टॉयलेट के लिए छुट्टी मांगने पर दो अंगुली के बीच पेंसिल फंसाकर दबाना, मॉनीटर की शिकायत पर मारना, आपस में बातचीत करने और लंच ब्रेक में खाना नहीं खाने पर पिटाई करना। पोद्दार शैक्षणिक संस्थान मुंबई ने एक सर्वेक्षण किया, जिसमें यह बात सामने आई कि करीब 76 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए शारीरिक रूप से दंडित करते हैं। इसी तरह 67 फीसदी माता-पिता अपनी बात मनवाने के लिए बच्चों को घूस के रूप में उपहार देते हैं, ताकि वे उनके मन मुताबिक ही चलें। कई अभिभावकों ने तो माना कि वे बच्चों को अपने वश में करने के लिए उन्हें भावनात्मक रूप से धमकाते हैं। कभी दोस्त के सामने अनादर करना तो कभी बोर्डिग में डाल देने की धमकी देते हैं।
बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए अपनाए जाने वाले इन तरीकों का उनकी मनोदशा पर क्या असर पड़ता है, यह जानना बहुत जरूरी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जो बच्चे स्कूलों में पिटाई के शिकार होते हैं, उन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ते हैं। पिटाई के कारण बच्चे बड़े होने पर शारीरिक तथा मानसिक बीमारी के शिकार तक हो जाते हैं। भय के मारे बच्चे अपनी बात साझा करने से घबराने लगते हैं। इस वजह से ही ऐसे बच्चों के स्वभाव के विद्रोही होने की पूरी गुंजाइश रहती है। कुछ बच्चे इतने आहत हो जाते हैं कि वे बोलना भी बंद कर देते हैं। इसके विपरीत कुछ बच्चे यह भी सीख जाते हैं कि हिंसा किसी भी गलती की एक स्वीकार्य प्रतिक्रिया है और वे खुद भी इस बात पर अमल करना शुरू कर देते हैं। वे स्कूल में भी इसे आजमाते हैं। वे दूसरे बच्चों को परेशान करते हैं। उन्हें बुली करते हैं क्योंकि कहीं न कहीं ऐसे बच्चे शक्तिशाली दिखना चाहते हैं या फिर डरे-सहमे से दब्बू बन जाते हैं। ऐसे बच्चे आत्मप्रेरणा से वंचित हो जाते हैं। वे अपनी वास्तविक सामथ्र्य का उपयोग नहीं करते और जीवन में कोई खुशी नहीं महसूस कर पाते। ये बच्चे माता-पिता से कोई बात नहीं करते। अपनी भावनाएं एवं गतिविधियां छिपाने लगते हैं। नतीजतन, ऐसे बच्चे अपने साथियों को अधिक अहमियत देने लगते हैं। 11वीं कक्षा तक आते-आते ऐसे बच्चे जोखिम मोल लेने लगते हैं। इस बारे में हुए सर्वे में शिक्षकों की राय जानी गई, तो कई शिक्षकों ने पिटाई व सजा देने को जरूरी बताया। उनका तर्क था कि वे बच्चों के दुश्मन नहीं हैं। उनका भविष्य बनेगा, तो लाभ बच्चों को व उनके परिजनों को होगा जबकि मनोवैज्ञानिकों तथा काउंसलरों का कहना है कि बच्चों के होमवर्क न करने पर उनकी समस्या को समझना चाहिए। यदि बच्चे का झूठ पकड़ाता है तो सही स्थिति की जानकारी लेनी चाहिए। उसके माता-पिता और घर की परिस्थितियों को समझना तथा उसे मानसिक सहयोग प्रदान करने भर से स्थिति काफी हद तक ठीक हो सकती है। सजा के बजाय काउंसलिंग करना ही बेहतर तरीका होता है। किसी भी समस्याग्रस्त बच्चे के विषय में अभिभावकों को प्रधानाचार्य और शिक्षक-शिक्षिकाओं से बातचीत करने के बाद निर्णय लेना उचित रहता है।
अमेरिकी पत्रिका ‘चाइल्ड डेवलपमेंट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माता-पिता या अभिभावक परवरिश केदो तरीके अपनाते हैं। वे या तो बहुत उदार नजर आते हैं या वे अपने बच्चों के साथ बहुत सख्त हो जाते हैं। वे पिटाई करने से भी नहीं हिचकते, लेकिन ये दोनों ही तरीके सही नहीं हैं। मां-बाप को अपने बच्चों को प्रोत्साहित करने वाला माहौल भी देना चाहिए, जहां सही-गलत की सीमाएं तय हों, मगर शारीरिक दंड के लिए कोई जगह न हो।

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