भारत में महिलाओं की आधी आबादी खून की कमी यानी एनीमिया की गिरफ्त में



प्राय: पूरी दुनिया मानती है कि भारत में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। उन्हें रोज कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसमें दूसरे पहलू तो शामिल हैं ही स्वास्थ्य का मुद्दा भी इन्हीं समस्याओं से जुड़ा है। हाल ही में खबरें आई हैं कि भारत में 51 फीसदी औरतों को एनीमिया (खून की कमी) है। यह एक बीमारी ही है। कहा जाता है कि हर साल एक करोड़ महिलाएं एनीमिया की गिरफ्त में आती हैं। हाल ही में न्यू ग्लोबल रिपोर्ट-2012 के अनुसार एनीमिया से जूझ रही महिलाओं की लिस्ट में भारत का नंबर सबसे ऊपर है। भारत में 51 फीसदी यानी आधी से ज्यादा महिलाएं बीमारी की चपेट में हैं। साल 2016 में भारत में यही आंकड़ा 48 फीसदी था। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि जो देश ज्यादा समृद्धशाली है, वहां की महिलाएं भी एनीमिया की शिकार हैं। स्विट्जरलैंड और फ्रांस में भी 18 फीसदी औरतें शिकार हैं। भारत के बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया एवं इंडोनेशिया का स्थान आता है। विश्व की बात करें तो 15 से 49 वर्ष की कुल 614 मिलियन महिलाएं बेहाल हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, खून की कमी का मुख्य कारण शरीर में लौह तत्वों की कमी का होना है। शरीर को हेल्दी और फिट रहने के लिए अन्य पोषण तत्वों के साथ आयरन की भी जरूरत होती है। आयरन खून में हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ के निर्माण के लिए जरूरी है। यही हीमोग्लोबिन रक्त में ऑक्सीजन का वाहक होता है एवं इसी की वजह से खून का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती व शरीर शर्करा और वसा का दोहन कर ऊर्जा नहीं बना पाता। ऐसी स्थिति होने पर महिलाएं एनीमिया की गिरफ्त में आ जाती हैं। मासिक धर्म के कारण होने वाली आयरन की कमी के चलते स्त्रियां वर्ष भर में अपने कुल रक्त का 22 फीसदी खो देती हैं। साथ ही दूषित रक्त के साथ बहुत सारे जरूरी खनिज एवं धातु भी निकल जाते हैं। यदि ऐसे में उनकी आपूर्ति न हो तो गंभीर समस्या से ग्रस्त हो जाती हैं। हीमोग्लोबिन की कमी से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, जिसकी वजह से थोड़ा सा काम करने से थकान महसूस होने लगती है। साथ ही चक्कर आना, त्वचा का रंग पीला पड़ना, सीने में हल्का दर्द बने रहना, शरीर के तापमान में कमी तथा आंखों के नीचे काले घेरे जैसे लक्षण भी दिखने लगते हैं। ऐसे में चिंता तब ज्यादा बढ़ जाती है जब महिला गर्भवती हो। गर्भस्थ शिशु भी महिला के शरीर से खून लेता है। छोटे बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं में भी एनीमिया की बीमारी का खतरा बना रहता है।
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर जुगल किशोर बताते हैं कि एनीमिया का मतलब ही है शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम होना। इसके कई कारण हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान या पीरियड्स में अत्यधिक रक्त स्नव होने के कारण तथा इसके अलावा अनेक बार पाइल्स या अल्सर के कारण भी एनीमिया हो सकता है। उन्होंने बताया कि आजकल पर्यावरण में मौजूद हानिकारक तत्व भी एनीमिया का कारण बन रहे हैं। वजन कम करने के लिए डाइटिंग कर रही लड़कियां भी इसकी शिकार हो जाती हैं। ये आंकड़े और भी परेशान करने वाले हैं कि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा ओडिशा की 79 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। झारखंड में हर रोज आठ गर्भवती महिलाएं खून की कमी की वजह से अकाल मौत का शिकार हो रही हैं। अनुसूचित जाति की महिलाओं में यह आंकड़ा 85 फीसदी तक है। इसी तरह राजस्थान के सीकर में हर तीसरे दिन एक मृत बच्चा पैदा हो रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय और न्यूट्रीशन फाउंडेशन की एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश के छह वर्ष तक की उम्र के 50 फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। एनीमिया ग्रस्त किशोरों की तादाद के मामले में दुनिया में भारत छठे स्थान पर है। भारत से पहले कांगो, बेनिन, घाना, सेनेगल और माली देश आते हैं। भारत में 56 फीसदी किशोर खून की कमी से जूझ रहे हैं। एनीमिया से ग्रस्त बच्चों की लंबाई पोषक तत्वों की कमी के कारण कम रह जाती है और इससे उनकी मानसिक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। एनीमिया भारत या एशिया की ही समस्या नहीं है, बल्कि यह विश्व का संकट है। मानकों के मुताबिक शरीर में 12 ग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए।
इसे विडंबना ही कहेंगे कि एनीमिया को लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। वे मानते हैं कि यह एक साधारण स्वास्थ्य समस्या है और इसे गंभीरता से लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि यह कमी कई बीमारियों की जड़ होती है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए संतुलित व पोषक तत्वों से भरपूर आहार लेना जरूरी है। एनीमिया को ठीक होने में कम से कम छह महीने का समय लगता है। इसे दूर करने के लिए मांस, अंडा, मछली, किशमिश, सूखी खुबानी, बीन्स, पालक और हरी सब्जियां जैसे आहार का सेवन बेहद जरूरी है। आयरनयुक्त डाइट भी तभी फायदेमंद होती है जब उसके साथ विटामिन-सी का सेवन किया जाए। दवाइयों का सेवन चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए। एनीमिया की रोकथाम के लिए जागरूकता की जरूरत है। सरकारी स्तर पर गांवों में शिविर वगैरह लगाकर या सरकारी अस्पतालों में दवा वितरण भी जरूरी है। एनीमिया जैसे रोग से मुक्ति पाना देश और सरकार के लिए भी चुनौती है।

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