ऐलानों के आईने में दमदार है बजट, कुछ उम्मीदें तो जगाता ही है अब सरकार उस पर तेजी से अमल करे




मौजूदा केंद्र सरकार का आखिरी पूर्ण बजट कुछ ऐसा ही होना था, इसलिए ऐलानों और योजनाओं के लिहाज से देखें तो यह न केवल आकर्षक है, बल्कि भविष्योन्मुखी भी दिखता है। बजट में किसानों के उत्थान की मंशा दिखती है भले अभी रूपरेखा बहुत स्पष्ट न हो। हालांकि, रूपरेखा का महत्वपूर्ण होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि अंतत: नतीजे वही देगी। फिर भी कहना चाहिए कि वित्त मंत्री अरुण जेटली साल 2018-19 के बजट में किसानों की बेहतरी के लिए कई विश्वसनीय कदम उठाते दिखे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सरकार ने आगामी खरीद की फसलों को उत्पादन लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना कीमत पर लेने का फैसला ले लिया है। हालांकि, उस लागत में किसान के श्रम की लागत का भी आकलन होगा या नहीं यह तो लागत मूल्यों के ऐलान के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इस घोषणा से यह बात स्पष्ट हुई है कि किसान अब सचमुच सरकार की प्राथमिकता में आया है, अगर यह सरकार की नजर में महज चुनावी साल के पहले की सतर्कता भर नहीं है तो।
मोदी सरकार अपने गठन के बाद से ही कह रही है कि वह 2022 तक देश के किसानों की आमदनी बढ़ाकर दोगुना कर देगी, लेकिन अभी तक उन उपायों का खुलासा नहीं किया था, जिसकी बदौलत यह संभव है। पूरी तरह से तो इस बजट में भी नहीं है, लेकिन लागत मूल्यों के रूप में एक इशारा किया गया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि किसानों को लागत से डेढ़ गुना कीमत मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए बाजार मूल्य और एमएसपी में अंतर की रकम सरकार वहन करेगी। ये एक ठोस बात है जो पहली बार कही गई है। जेटली के मुताबिक, बाजार के दाम अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम होंगे तो सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसानों को बाकी पैसे दिए जाएं। इसके लिए नीति आयोग व्यवस्था का निर्माण करेगा। मोदी सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए 11 लाख करोड़ रुपए का फंड भी इस बजट में बनाने का ऐलान किया है। हालांकि, इसमें एक झोल है। झोल यह कि यह मदद अभी अस्पष्ट है।
दरअसल यह फंड कर्ज चाहने वालों के लिए है और यह 11 लाख करोड़ का फंड पहली बार नहीं बनाया गया, पिछले साल भी यह था। हां तब यह 10 लाख करोड़ का था यानी इसमें एक लाख करोड़ का इजाफा किया गया है। इस घोषणा में दूसरा झोल यह है कि उद्योग क्षेत्र के लिए यह फंड 70 लाख करोड़ रुपए है। यानी खेती से करीब 670 फीसदी ज्यादा। यह तुलना इसलिए खास है, क्योंकि खेती पर आज भी करीब 60 फीसदी लोग आश्रित हैं। इस बजट में कृषि से संबंधित और भी कई महत्वपूर्ण बातें हैं। मसलन वित्तमंत्री ने ऐलान किया है कि मामूली किसान भी अपना उत्पाद प्रतिस्पर्धी बाजार तक ले जा सके इसके लिए सरकार जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर सुनिश्चित करेगी। इसके लिए जिलों में क्लस्टर बेस्ड डेवलेपमेंट मॉडल तैयार किया जाएगा और छोटे किसान की पहुंच भी ई-नैम यानी केंद्र सरकार द्वारा संचालित कृषि उत्पादों के अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार तक। यह काम मार्च-2019 तक संभव होगा। बजट में यह भी कहा गया है कि कृषि के बाजारों को बेहतर सड़क मार्गो के जरिये गांवों से जोड़ा जाएगा।
कृषि के अलावा वित्त मंत्री ने शिक्षा पर भी जोर दिया है और इसके लिए एक फीसदी का सेस भी लगा दिया है बिना इस बात की पड़ताल किए कि पहले से ही लगे सेस के जरिये जो विशाल रकम एकत्र हुई है उसका कहां और कैसे इस्तेमाल हो रहा है। बहरहाल, मौजूदा बजट में जोर दिया गया है कि प्री नर्सरी से 12वीं तक सभी को शिक्षा मिलना सुनिश्चित किया जाएगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए डिजिटल पढ़ाई को बढ़ावा दिया जाएगा। बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए भी कई बड़े लक्ष्य तय किए गए हैं। आदिवासियों के लिए एकलव्य विद्यालय बनाए जाएंगे। बडोदरा में रेलवे यूनिवर्सिटी बनेगी। स्कूलों में ब्लैक बोर्ड की जगह डिजिटल बोर्ड लगाए जाएंगे। हेल्थ वेलनेस केंद्र बनाने के लिए एक हजार 200 करोड़ रुपए का फंड बनाया गया है। ऐलानों के इसी क्रम में ओबामा केयर की तरह मोदी केयर के जरिए 10 करोड़ गरीब परिवारों को मेडिकल खर्च मिलेगा। इसके तहत हर परिवार को एक साल में पांच लाख तक का मेडिकल खर्च मिलेगा। इस तरह देश की 40 फीसदी आबादी को सरकारी हेल्थ बीमा मिलेगा। साथ ही 24 नए मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे।
खेती और शिक्षा से बाहर आएं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी ऐलानों की अच्छी खासी भरमार है। मसलन, व्यापार शुरू करने के लिए मुद्रा योजना के लिए तीन लाख करोड़ रुपए का फंड बनाया गया है, जबकि छोटे उद्योगों के लिए तीन हजार 794 करोड़ रुपए खर्च होंगे। साल 2022 तक हर गरीब को घर देने का ऐलान किया गया है। देश में दो करोड़ शौचालय और बनाए जाएंगे। देश के चार करोड़ घरों में सौभाग्य बिजली योजना से कनेक्शन मिलेंगे। दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण से निपटने के लिए नई स्कीम लांच की जाएगी। स्कूलों में डिजिटल बोर्ड पर जोर दिया जाएगा। आलू, प्याज और टमाटर के लिए ऑपरेशन ग्रीन शुरू होगा। इसके लिए 500 करोड़ रुपए मिलेंगे। किसान क्रेडिट कार्ड पशुपालकों को भी मिलेगा। 42 मेगा फूड पार्क बनाए जाएंगे, साथ ही आठ करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए जाएंगे। इस तरह देखा जाए तो ऐलानों के हिसाब से बजट में उम्मीदों की भरमार है, लेकिन इस बात को याद रखिए कि सब कुछ के बाद भी यह व्यावहारिक जटिलता से दो-चार हुए बिना किए गए ऐलान भर हैं। यह बात जोर की आवाज में इसलिए भी कही जा सकती है कि सरकार जिस खरीद मूल्य को डेढ़ गुना किए जाने की बदौलत किसानों की तस्वीर बदलने की बात कर रही है उसमें एक बड़ी समस्या यह है कि तकरीबन 53 फीसदी किसान कृषि मजदूर हैं इसलिए उन्हें फसलों की बढ़ी हुई खरीद मूल्य का फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि उन्हें तो मजदूरी भर मिलती है। दूसरी बात यह है कि जितने किसान हैं उनमें से 87 फीसदी छोटी जोत वाले हैं इसलिए उन्हें भी बढ़ी हुई फसलों की कीमत नहीं मिलेगी। इस तरह देखा जाए तो फसलों की कीमत बढ़ोतरी का फायदा छोटे हिस्से को मिलेगा। इसलिए डर यह भी है सभी किसानों के नाम पर सिर्फ इन्ही किसानों की कहीं सेहत न सुधरती रहे।
फिर भी बजट एक आशा जगाता है। अगर कुछ देर के लिए बजट को पूर्णकालिक और चुनावी मानने से इंकार कर दिया जाए, तो यह देश को नई दिशा देने में अहम भूमिका अदा कर सकता है। विपक्ष ने भी बजट को चुनावी बताने जैसा ही बयान दिया है। बजट में किए गए प्रावधानों की आलोचना खुले स्वर में नहीं है। बजट के बाद पीएम मोदी ने भी कहा है कि यह हर वर्ग के लोगों की आशओं को मजबूती देने वाला है। बजट में वित्त मंत्री ने 14.50 लाख करोड़ रुपए गांवों के लिए दिए हैं जो अब तक की सबसे बड़ी राशि है। पीएम बोले कि यह बजट देश की नींव मजबूत करने वाला बजट है साथ ही किसान, आम आदमी, व्यापार व विकास फ्रेंडली बजट है। इसमें फूड प्रोसेसिंग से लेकर फायबर ऑप्टिक, रोड से शिपिंग, युवाओं से वरिष्ठ नागरिकों, ग्रामीण भारत से आयुष्मान योजना और डिजिटल इंडिया से स्टार्टअप इंडिया तक देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदों को मजबूत करेगा। बजट को समझने वालों ने भी और सुनने वालों ने भी वित्तमंत्री के प्रावधानों को पहली नजर में खारिज नहीं किया है।

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