नेताओं का इस तरह से अंधविश्वास में फंसना देश और समाज के लिए सही नहीं, भूत-प्रेत की बातें बंद करें



बिहार में लालू यादव के बेटे तेज प्रताप यादव के बाद अब राजस्थान विधानसभा में भी अंधविश्वास की बातें होने लगी हैं। नेताओं का इस तरह से अंधविश्वास में फंसना देश और समाज के लिए सही नहीं है। अत: वे इस तरह की बातें बंद कर विकास पर ध्यान लगाएं।
हमारे नेताओं के बारे में अकसर कहा जाता है कि वे हर काम से पहले शुभ-अशुभ का विचार जरूर कर लेते हैं। ऐसा करके नेता शायद राजनीति में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचना चाहते हैं। शुभ मुहूर्त में नामांकन दाखिल करने से शपथ लेने तक अकसर नेताओं की बातें दिख जाती हैं, जो उन्हें अंधविश्वास में यकीन रखने वाला बनाती हैं। इन दिनों अंधविश्वास का जीता-जागता उदाहरण बिहार में देखने को मिल रहा है। जहां लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भूत पीछे लगाने का दावा कर रहे हैं। भूतों के डर से तेज ने अपना सरकारी आवास भी छोड़ दिया है।
अंधविश्वास का दूसरा उदाहरण राजस्थान में देखने को मिला। सदन के बाहर मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर और नागौर से भाजपा विधायक हबीबुर्रहमान अशरफी ने यहां तक कहा कि विधानसभा में बुरी आत्माओं का साया है। तभी तो आज तक सदन में कभी 200 विधायक एक साथ नहीं रहे। कभी किसी की मौत हो जाती है, कभी किसी को जेल हो जाती है। आत्माओं की शांति के लिए हवन और पंडितों को भोजन कराने की जरूरत है। यह कितना अजीब है जिस विधानसभा में अंधविश्वास को खत्म करने के कानून बनते हैं, उसी में भूत-प्रेत व बुरी आत्माओं जैसी अंधविश्वास बढ़ाने वाली बातें हुईं।
वैसे, राजस्थान अकेला राज्य है, ऐसा भी नहीं है। मध्यप्रदेश की विधानसभा को लेकर भी ऐसी चर्चा समय-समय पर होती रहती है। कर्नाटक भी इसी श्रेणी में शामिल है। वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया तो खुद बड़े अंधविश्वासी हैं। आपको याद ही होगा कि एक बार उनकी कार पर कौआ क्या बैठ गया, उन्होंने कार ही बदल डाली। वैसे, कर्नाटक अंधविश्वास विरोधी कानून लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य है। महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक में कानून लागू जरूर हो गया है, मगर नेताओं से लेकर लोगों की सोच में बदलाव अब तक नहीं दिखा है।
यूपी में चुनाव के दौरान भी नेता अपनी-अपनी पार्टी की सरकार बनाने के लिए तंत्रमंत्र विद्या और ज्योतिषों का सहारा लेते दिखे थे। कहने का तात्पर्य यह है कि नेता से लेकर जनता तक में अंधविश्वास बुरी तरह पैठ बना चुका है। इसे अभी खत्म नहीं किया गया, तो यह विद्रूप हो सकता है। सवाल यह भी है कि जब नेता इस तरह अंधविश्वास में फंसे रहेंगे, तो वे जनता को कैसे छुटकारा दिला पाएंगे। हमारे देश की जनता दो पर ही ज्यादा भरोसा करती है, एक नेता और दूसरा अभिनेता।
देश में अंधविश्वास की फैली चादर को खत्म करने के लिए जरूरी है कि नेता खुद में बदलाव लाएं और बेफिजूल की बातें करना बंद करें। केंद्र सरकार अंधविश्वास के खिलाफ कानून पारित करने का मन बना रही है। कानून बनने के बाद नेताओं की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करें। अगर वे ही इस तरह की बातें करेंगे, जो जनता को कैसे सजग कर पाएंगे। अत: जरूरी है कि नेता भूत-प्रेत का राग अलापना बंद करें और काम पर ध्यान दें।

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