लालू यादव की बढ़ती मुश्किलें


राज एक्सप्रेसभोपाल। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav)की परेशानियां और बढ़ गई हैं। चारा घोटाला के दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में रांची की सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को अब तक की सबसे बड़ी सजा सुनाते हुए दो धाराओं में सात-सात साल की सजा सुनाई है। अब सवाल है कि क्या लालू औपचारिक तौर पर पार्टी की कमान तेजस्वी यादव को सौंप देंगे और क्या तेजस्वी अपने पिता लालू की जगह को भर पाएंगे? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की परेशानियां और बढ़ गई हैं। चारा घोटाला के दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में शनिवार को रांची की सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को अब तक की सबसे बड़ी सजा सुनाते हुए दो धाराओं में सात-सात साल की सजा सुनाई है। साथ ही 30-30 लाख रुपए का अर्थदंड भी लगाया है। जुर्माना नहीं देने पर एक साल की सजा बढ़ जाएगी। दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपए की अवैध निकासी से जुड़े मामले में लालू को विशेष अदालत ने सोमवार को दोषी करार दिया था। इस समय लालू रिम्स अस्पताल में भर्ती हैं। चारा घोटाले से जुड़े छह मामलों में से अब तक चार में लालू यादव को सजा हो चुकी है। पहले मामल में चाईबासा कोषागार से अवैध तरीके से 37.7 करोड़ रुपए निकालने का आरोप लगा, 5 साल की सजा हुई।
दूसरे मामले में देवघर सरकारी कोषागार से 84.53 लाख रुपए की अवैध निकासी के आरोप में साढ़े तीन साल की सजा और 5 लाख का जुर्माना। तीसरे मामले में चाईबासा कोषागार से 33.67 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के आरोप में 5 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। चारा घोटाले के कारण लालू प्रसाद यादव का जेल जाना देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है, पर यह अप्रत्याशित नहीं है। हमारे देश में बहुत-से राजनीतिकों पर सत्ता में रहते हुए पद का दुरुपयोग करने व भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पर कोई-कोई मामला ही अदालती फैसले तक पहुंच पाता है। चारा घोटाले के मामलों में जांच और न्यायिक कार्यवाही लंबे अरसे से चलती रही है। फिलहाल, लालू की मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती। चारा घोटाले के दो अन्य मामले जो लंबित हैं उनमें भी लालू प्रसाद आरोपी हैं।
फिर, आय से अधिक संपत्ति और धनशोधन के मामलों में प्रवर्तन निदेशालय और आय कर विभाग की जो कार्रवाई लालू परिवार के खिलाफ चल रही है उसकी भी आंच आएगी ही। खासकर बिहार की राजनीति पर इस सब का गहरा असर पड़ेगा। परिवार की जागीर बन चुके राजद के भविष्य पर सवालिया निशान लग चुका है। कांग्रेस ने संकट में लालू के साथ खड़े होने और गठबंधन कायम रखने का इरादा जताया है। इसे मजबूरी का ही निर्णय कहा जा सकता है, कोई नैतिक निर्णय नहीं। भाजपा को एक बार फिर लालू और साथ ही कांग्रेस को घेरने का मौका मिला है। बहुचर्चित चारा घोटाला लालू की सबसे दुखती रग रहा है। उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान चारे की खरीद काफी बढ़े हुए दाम पर की गई थी। यानी वास्तविक कीमत से ज्यादा भुगतान हुआ। फिर, कई मामलों में तो बिना खरीद के ही भुगतान हो गया।
सीबीआई के मुताबिक, यह घोटाला कोई एक हजार करोड़ का था और 1990 से 1997 तक चला। घोटाले से जुड़े एक मामले में लालू को कुछ बरस पहले जेल जाना पड़ा। उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई थी। पर वे थोड़े ही दिन कैद में रहे। उन्हें जमानत मिल गई और जनवरी में पहला फैसला आने तक वे जमानत पर ही थे। चारा घोटाले के इस मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनके चुनाव लड़ने पर कानूनन पाबंदी लग गई। लेकिन वे अपनी पार्टी या राष्ट्रीय जनता दल का संचालन करते हुए राजनीति में पहले की ही तरह जमे रहे। लालू यादव को 2013 में इसी घोटाले के एक मामले में सजा के बाद सांसद पद छोड़ना पड़ा था और एक तय अवधि तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई थी। उस वक्त माना यही गया था कि लालू यादव की राजनीति खत्म हो गई, लेकिन राजनीति में उनकी भूमिका बनी रही।
वह चुनावी राजनीति से भले ही बाहर हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी प्रासंगिकता खत्म नहीं होने दी। बिहार की राजनीति को वह अब तक प्रभावित करते रहे हैं। सबको पता है कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी क्या भूमिका रही है, यह भी कि 2014 में चले मोदी रथ को बिहार में रोकने पर यदि किसी की रणनीति काम आई थी, तो वह लालू प्रसाद यादव ही थे। अब लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में उनके छोटे पुत्र और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में स्थिति से निपटने का प्रयास किया जा रहा है, किंतु घोटालों और बेनामी संपत्ति में कार्रवाइयां झेल रहे लालू यादव, उनके पूरे परिवार व राजद की राजनीतिक राह उतनी आसान नहीं दिखती। वैसे, राजद सुप्रीमो की अनुपस्थिति में नीतीश कुमार को खुला राजनीतिक मैदान मिल सकता है।
साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के 2019 के मिशन को वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में झटका लगने की भी संभावना है। घोटालों और बेनामी संपत्ति के मामलों में कार्यवाइयां झेल रहे लालू यादव के पूरे परिवार के लिए पार्टी के अंदर असंतुष्ट गतिविधियों पर नियंत्रण कर पार्टी को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती है। हालांकि जब भी इस तरह का संकट लालू यादव और राजद ने झेला है उनकी पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। लालू यादव जब भी जेल गए उनके जनाधार में बिखराव नहीं दिखा। चारा घोटाले के तीन और मामलों पर लालू यादव के खिलाफ चल रही सुनवाई और भ्रष्टाचार के कई मामलों में दोषी पाए जाने के बाद भी उनकी जाति के लोग लालू यादव को अभी भी भगवान मानते हैं। ऐसी संकट की घड़ी में राजद का हर कार्यकर्ता एकजुट रहता आया है, जिसकी वजह से वर्ष 2015 के चुनाव में राजद की बिहार की सत्ता में वापसी हुई थी।
हालांकि, इससे पहले लालू यादव जब भी जेल गए थे, पार्टी की कमान उनकी पत्नी राबड़ी देवी के हाथों में रही थी, जिससे दल के अन्य वरिष्ठ नेताओं के लिए असहज स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। लालू यादव के समकक्ष वरिष्ठ नेताओं को इस बार लालू यादव के पुत्र का नेतृत्व सहज रूप से कितना स्वीकार्य होगा, यह भविष्य के गर्भ में है। दोनों का राजनीतिक सफर शुरू तो हो चुका है लेकिन लालू के कद तक पहुंचने में अभी उन्हें काफी वक्त लगेगा। फिर भी वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में पार्टी और लालू यादव के पुत्रों और पूरे परिवार की राजनीतिक राह उतनी आसान नहीं दिखती है। अब सवाल है कि क्या लालू औपचारिक तौर पर पार्टी की कमान तेजस्वी यादव को सौंप देंगे? सूत्रों के अनुसार अब पार्टी की पसंद और मजबूरी तेजस्वी यादव हैं।
वह उपचुनाव का टेस्ट भी पास कर चुके हैं, जिसमें आरजेडी अपने दोनों सीट जीतने में सफल रही थी। हालांकि लालू के सामने अभी तीन तरह की चुनौती है। बड़ी चुनौती सीनियर नेताओं रघुवंश प्रसाद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसों के साथ समीकरण बनाने की है। पिछले दिनों मनोज झा को राज्यसभा भेजकर तेजस्वी ने संदेश दे दिया था कि उनका पार्टी पर नियंत्रण हो चुका है। इसके बाद बड़ी चुनौती अपने कुनबे को बढ़ाने की और गठबंधन की गाड़ी को संवारने की है। अब तक लालू प्रसाद यह काम निभाते रहे हैं। यह स्पेस तेजस्वी के लिए भरना आसान नहीं होगा। अब देखना है कि वे ऐसा कर पाते हैं या नहीं।

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