कानूनी सख्ती पर अमल भी किया जाए
राजस्थान ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों
को मौत की सजा के लिए संशोधन बिल पारित कर दिया है। मध्यप्रदेश के बाद
राजस्थान अब देश का दूसरा राज्य बन गया है, जहां सरकार ने बलात्कार के
मामलों में दोषी लोगों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। सरकार
का मानना है कि इस बिल के पास होने पर अब न सिर्फ बलात्कार की घटनाओं में
कमी आएगी, बल्कि ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों को कड़ी सजा भी दिलाई जा
सकेगी। कुछ समय पहले हरियाणा ने भी 12 साल तक की कम उम्र की बच्ची के साथ
दुष्कर्म होने पर आरोपी को कम से कम 14 साल का कठोर कारावास या मौत की सजा
के नए प्रावधानों पर मुहर लगाई है। इसके अलावा वहां सामूहिक दुष्कर्म होने
पर कम-से-कम 20 साल कठोर कारावास की सजा का प्रावधान भी किया गया है।
हरियाणा में तो बच्चियों से छेड़छाड़ और उनका पीछा करने की सजा भी बढ़ा दी
गई है। आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में पांच सालों में 12 साल से कम उम्र
की 377 बेटियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं। यह दुखद, चिंतनीय और
कटु सच है कि इस मामले में देश के अधिकतर राज्यों के आंकड़े भयभीत करने
वाले ही हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रलय की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश
में 53.22 फीसदी बच्चे यौन शोषण का शिकार हैं।
अफसोस की बात है
समाज का आम नागरिक हो या शासन-प्रशासन से जुड़े लोग, ऐसे कठोर कानून का
समर्थन ही करते हैं। जरूरी तो यह है कि यह कानूनी सख्ती सबक भी बने। उस
दुस्साहस पर चोट की जाए जो ऐसी बर्बर सोच रखने वालों के मन में पलता है।
छोटी-छोटी बच्चियों के साथ आये दिन हो रही ऐसी कुत्सित घटनाएं दिल दहला
देने वाली हैं। हाल ही में महिला दिवस ठीक एक दिन पहले राजस्थान के ही
चित्तौड़गढ़ में चार साल की मासूम के साथ गैंगरेप की घटना ने लोगों का दिल
दहला दिया। अफसोस कि देश के कोने-कोने से आये दिन ऐसे मामले सामने आते हैं।
कम आयु की बच्चियों के साथ हुई दुष्कर्म की घटनाएं तो अमानवीयता और
बर्बरता की हद पार वाली हैं। ऐसे में कुत्सित सोच रखने वाले लोगों में कठोर
सजा का भय होना जरूरी है, लेकिन देखने में आता है कि इन अपराधों को अंजाम
देने वाले हैवान बच निकलते हैं। बर्बर सोच और कुत्सित कर्म वाले अपराधियों
का यूं बच निकलना पीड़ित बच्ची और उसके परिवार का ही नहीं पूरे समाज का
मनोबल तोड़ता है। न्यायिक व्यवस्था में आमजन भरोसा कम करता है। ऐसे में
कठोर कानून बनाने के बावजूद भी अगर हालत जस के तस रहते हैं तो यह वाकई
चिंतनीय है, क्योंकि मासूम बच्चियों के साथ होने वाले ऐसे हादसे पूरे समाज
की संवेदनाओं और चिंताओं से जुड़े मामले हैं। इसलिए कानूनी लचरता के चलते
अगर अपराधियों में भय नहीं बल्कि दुस्साहस बढ़ता है तो यह पूरी व्यवस्था और
समाज के लिए अफसोस की बात है।
दुधमुंही बच्ची से बलात्कार
मात्र छह माह की दुधमुंही बच्ची से बलात्कार? पहली दूसरी कक्षा में
पढ़ने वाली बच्ची के साथ दुष्कर्म? अपनी ही गली-मोहल्ले में खेल रही किसी
घर की पांच-सात साल की बिटिया के साथ बर्बरता? खेल के मैदान या फिर अपने ही
घर में ऐसी अमानवीयता को झेलना किसी मासूम बच्ची के हिस्से आना। आखिर
क्यों? कैसा समाज बना रहे हैं हम? यह सवाल अब लाजिमी भी है और जरूरी भी।
क्योंकि भारत भर में पांच साल में बच्चों से बलात्कार के मामलों में 151
फीसदी की वृद्धि हुई है। यही वजह है कि बच्चियों के साथ ऐसी अमानवीय हरकत
करने वाले लोगों को सख्त से सख्त सजा दिए जाने को लेकर लंबे समय से बहस
जारी है। गौरतलब है कि दो साल पहले उच्चतम न्यायालय ने भी कहा था कि किसी
बच्ची से बलात्कार के जुर्म में दोषी को कठोर सजा देने का प्रावधान करने के
लिए संसद को कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए और बलात्कार के ऐसे
अपराध में ‘बालिका’ को परिभाषित करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक,
संसद भारतीय दंड संहिता में ऐसे प्रावधान और बलात्कार के अपराध के संदर्भ
में ‘बच्चे’ को परिभाषित करने पर भी विचार कर सकती है। बच्चियों से
बलात्कार के दोषियों का बंध्याकरण किए जाने की महिला वकीलों की याचिका में
कहा गया था कि बच्चियों की पीड़ा को देखते हुए दोषियों में भय का भाव पैदा
करना जरूरी है।
कानूनी कठोरता
यह कहना गलत नहीं होगा कि, अगर संवेदनाएं मर चुकी हैं तो कानूनी कठोरता
क्यों न अपनाई जाए? कब तक व्यवस्था की लचरता आमजन को भय और मजबूरी के
हालातों में जीने को विवश करेगी? इन घटनाओं को संजीदगी से लिया जाना और
दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई कर सख्त सजा दिया जाना जरूरी है। दुनिया
के कई ऐसे देश हैं जहां बलात्कार की सख्त सजा दी जाती है। चीन और मिस्त्र
जैसे देशों में बलात्कारी को फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान है।
अफगानिस्तान में भी इस अपराध के खिलाफ बेहद कड़े कानून हैं, जिनके तहत सीधे
और साफ तरीके से बलात्कारी को मृत्यु की सजा दी जाती है। उत्तर कोरिया में
भी बलात्कार के अपराधियों के प्रति कोई दया या सहानुभूति नहीं दिखाई जाती।
वहां रेप के लिए मुजरिम के सिर में एक के बाद एक गोलियां दागी जाती हैं,
ताकि दूसरों को भूल कर भी ऐसा अपराध न करने का सबक मिले। ग्रीस में रेप की
सजा रेप करने वाले को बेड़ियों में जानवरों की तरह बांधकर उम्रकैद के रूप
में जाती है। यह सजा सिर्फ रेप के लिए ही नहीं, बल्कि महिला के खिलाफ छोटे
से छोटे जुर्म के लिए भी दी जाती है। सऊदी अरब में भी इस जुर्म की मौत आसान
नहीं है। दुष्कर्म जैसा अपराध करने वाले को काफी पीड़ा और यातना से गुजरना
पड़ता है, क्योंकि उसे तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक उसकी मौत न हो
जाए। बीते दिनों ही पड़ोसी देश पाकिस्तान में सात साल की एक बच्ची से
बलात्कार और निर्मम हत्या के मामले में लाहौर हाइकोर्ट ने सजा सुनाते हुए
कहा कि आरोपी को कम से कम चार बार मौत की सजा दी जानी चाहिए। विचारणीय बात
यह है कि मासूम बच्ची से दुष्कर्म और की जघन्य हत्या के मामले में
पाकिस्तान में हाइकोर्ट इस कुकृत्य के आरोपी को महज चार दिन के भीतर ही
फांसी की सजा सुना दी थी।
कानून बनाए जा रहे हैं
विचारणीय है कि कानून भी बनाए जा रहे हैं और सरकार के ऐसे फैसलों को
समाज का समर्थन भी मिल रहा है, तो अब कोई वजह नहीं बचती कि ऐसे हैवानों को
उनकी बर्बरता का दंड न मिले। ऐसे असामाजिक तत्वों को सबक मिलना जरूरी है।
यह हमारी न्यायिक प्रक्रिया की लचरता का नतीजा है कि ऐसे अपराधों का ग्राफ
तेजी बढ़ रहा है। दुनिया के ऐसे कई देश हैं, जहां कानूनी नीति सख्त है और
अपराधियों को कठोर सजा दी जाती है। पर हमारे यहां पूरे देश को आक्रोशित
करने वाले क्रूरतापूर्ण निर्भया कांड के छह सालों के बाद भी आरोपियों को
सजा नहीं हो सकी है। मासूम बच्चियों का जीवन अंधेरे में धकेलने वाले अपराध न
तो कानूनी दांवपेचों और फाइलों की लंबी कतार में गुम कर देने वाले हैं और न
ही पहनावे और घर से निकलने के समय को लेकर महिलाओं पर दोषारोपण की सोच को
भेंट चढाने वाले। छोटी उम्र की बच्चियों के साथ होने वाले ऐसे मामले अपराध
करने वाले की कुत्सित सोच का नतीजा हैं। समाज, प्रशासन को ऐसे उदाहरण सामने
रखने ही होंगे कि जिस देश में बेटियों के पूजन की रीत है वहां उनके
मानमर्दन की ऐसी घटनाएं नहीं हो सकतीं।
डॉ. मोनिका शर्मा
(वरिष्ठ पत्रकार)
डॉ. मोनिका शर्मा
(वरिष्ठ पत्रकार)
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