जैसी अक्ल, वैसा काम


काशी में एक बड़ा सेठ रहता था, लेकिन वह बहुत कंजूस था। एक बार उसने घर की रखवाली के लिए एक चौकीदार रखने का विचार बनाया। लेकिन जो आदमी मिलता, वह बहुत ज्यादा पैसे मांगता। एक दिन उसके पास एक आदमी आया। वह शरीफ, ईमानदार और ताकतवर था, पर बुद्धि से थोड़ा कमजोर था। सेठ ने सोचा कि चौकीदारी के लिए बुद्धिमान की जरूरत ही क्या है। उसे रख लिया। एक दिन सेठ को बाहर जाना पड़ा। जिस दिन सेठ बाहर गया, संयोग से उसी रात उसके घर में चोर घुस गए। चौकीदार उनका मुकाबला नहीं कर सका। चोरों ने उसको बांध दिया। जब वे सारा सामान लूट कर जाने लगे तो चौकीदार बोला- भाई, तुम से एक प्रार्थना है- जो सामान तुम ले जा रहे हो, वह सब सेठानी की लड़की का है। उसकी शादी होने वाली है और सेठानी ने बड़ी मेहनत से यह सामान जुटाया है। तुम लोग वह सामान छोड़ दो और उसके दाम के बराबर रुपए ले लो। चोरों ने पूछा- रुपए कहां हैं? चौकीदार ने कहा-तिजोरी में। चोरों ने रुपए भी लूट लिए। अब वे रुपए व सामान लेकर जाने लगे तो चौकीदार बोला-सामान क्यों ले जा रहे हो, रुपए कम पड़ते हों तो तहखाने से मोहरें भी ले लो। उसने तहखाने का रास्ता भी बता दिया। जब चोर मोहरें लूट कर सामान सहित जाने लगे, तो चौकीदार ने फिर कहा- भाइयो, अब तो सामान छोड़ दो। चोर उसकी मूर्खता पर हंसने लगे। सेठ लौटकर आया, तो किस्सा सुनकर चौकीदार को मारने दौड़ा। तभी एक संत वहां पधारे। उन्होंने पूरी बात सुनी तो बोले- सेठजी, इसमें चौकीदार का क्या दोष। उसने तो अपनी बुद्धि के अनुसार सही काम किया। तरस तो आपकी बुद्धि पर आता है कि आपने चौकीदार रखने में भी कंजूसी की।

Comments

Popular posts from this blog

देश में जलाशयों की स्थिति चिंतनीय, सरकार पानी की बर्बादी रोकने की दिशा में कानून बना रही है

किसानों की समस्या का हल, आंदोलन या आत्महत्या नहीं

हिंसा के बीच गुम हो गए असल मुद्दे