किसानों की समस्या का हल, आंदोलन या आत्महत्या नहीं


देशभर में चल रहे किसान आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में एक बात साफ हो जानी चाहिए कि आंदोलन, आत्महत्या या केवल कर्जमाफी से किसानों की समस्या(Farmer Problem)का हल नहीं होने वाला है। देश का किसान आज के दौर में ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां उसे कोई विकल्प नजर नहीं आता। किसानों को मानसून की बेरुखी पर भी, और फसल तैयार होतेे समय भी, आंधी तूफान आने पर भी नुकसान होता है। किसान इन सबसे जैसे तैसे निपट भी लेता है तो बाजार में लागत भी नहीं मिले तो किसान अपने आपको ठगा महसूस करता है। लेकिन मजेदार बात यह है कि इन सभी बातों का फायदा बिचौलियों को मिल रहा है। फसल के समय किसान को पूरा पैसा नहीं मिलता और जरुरत के समय उपभोक्ता को कोई सामान सस्ता नहीं मिलता। इसका खामियाजा सरकार को भी भुगतना पड़ता है। सरकार किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीर है। सरकार किसानों की आय को दोगुणा करने के लिए योजनाए बना रही है। खेती में लागत कम करने के सरकारी प्रयासों के साथ ही दीर्घकालीन नीति बनाकर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर भी परिणाम दिखाई नहीं दे रहे हैं।
देशभर में किसानों के कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण आत्महत्या को मुद्दा बनाते हुए किसान संघों द्वारा कर्जमाफी की मांग की जा रही है। कई राजनीतिक दल भी इसे हवा दे रहे है। चुनाव घोषणा पत्रों में कर्ज माफी का मुद्दा भी उभरता है। उसके बाद चुनावी वादें के नाम पर कर्ज माफी की बात होती है। आत्महत्याओं को राजनीतिक रंग दिए जाने के प्रयास होते हैं। और शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक हो जाते हैं और इन सबमें किसान अंततः ठगा ही जाता है। कर्ज माफी से सभी किसानों का भला होने वाला नहीं है। बैंक चाहे सार्वजनिक, निजी, या सहकारी क्षेत्र के हो स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी एक तिहाई किसान ही ऋण सुविधा से जुड़ पाए हैं। लगभग 2 तिहाई किसान संस्थागत ऋण सुविधा से वंचित है। जहां तक फसली ऋण की बात है पिछले कुछ सालों से केन्द्र सरकार समय पर ऋण चुकाने वाले काश्तकारों को 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान दे रही है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कुछ राज्यों द्वारा समय पर ऋण चुकाने वाले काश्तकारों को शेष 4 प्रतिशत ब्याज भी अनुदान के रुप में दिया जा रहा है। ब्याज मुक्त ऋण होने के कारण 80 से 90 प्रतिशत किसान अपना फसली ऋण ब्याज बचाने के चक्कर में हर प्रकार से चुका देता है। ऐसे में केवल 10 से 15 प्रतिशत किसान ही ऋण नहीं चुका पाते हैं। ऐसे में जब ऋण माफी की बात होती है तो समय पर ऋण चुकाने वाले किसान स्वयं को ठगा महसूस करते हैं। ऐसे में ऋण माफी, कर्ज लेकर समय पर चुकाने की सजा ही मानी जा सकती है। एसे समय में सरकार को इस तरह की योजना बनानी होगी जिससे समय पर ऋण चुकाने के लिए प्रोत्साहन मिले। सरकार को ऋण माफी करना है तो इस तरह की व्यवस्था करनी होगी जिससे किसानों के हितों की भी रक्षा हो सके। एक समय था जब सरकार ऋण राशि नकद एक सीमा तक ही देती थी व शेष राशि इनपुट के रुप में दी जाती थी। अब पूरी ऋण राशि ही नकद में दे दी जाती है।
सरकार द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने, उर्वरकों के संतुलित उपयोग और नीमकोटेड यूरिया के वितरण से किसानों के हित में कुछ सुधार दिखाई देने लगा है। जैविक खेती पर जोर देने के साथ ही, पिछले 2 वर्षों से कृषि उपज के समर्थन मूल्य में भी बढ़ोतरी कर युक्तिसंगत किया जा रहा है, लेकिन इससे हल नहीं मिलेंगा। फसल तैयार होकर आते ही उसकी खरीद की ठोस व्यवस्था हो, तभी किसानों को राहत मिल सकती है। होता यह है कि फसल आने पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए भी परेशान होना पड़ता है। ऐसे में सरकारी कागजी खानापूर्ति के स्थान पर फसल के आते ही यदि भाव गिरते हैं तो सरकार द्वारा घोषित एमएसपी पर तो तत्काल खरीद शुरु हो जानी चाहिए और खरीद ही नहीं किसान को खरीदी गई फसल का पैसा भी हाथोहाथ किसान के खातें में पहुंच जाना चाहिए। सरकार को बागवानी फसलों को लेकर भी इसी तरह की नीति बनानी होगी ताकि टमाटर, आलू, प्याज, दूध या अन्य को सड़कों पर फैंकने वाली स्थिति सामने नहीं आएं। उत्पाद को सड़क पर फैंकने से इसका नुकसान देश को ही होता है। सरकार छोटे किसानों को कर्ज के स्थान पर खाद व बीज अनुदान के रुप में उपलब्ध कराने की पहल कर सकती है क्योंकि अच्छा गुणवत्तायुक्त बीज-खाद होंगे तो अधिक पैदावार, मण्डियों में आने से सरकार को जहां मण्डी कर अधिक प्राप्त होगा वहीं किसानों को घाटे का सौदा भी नहीं होगा। इसे एसे भी समझा जा सकता है कि 4 और 3 यानी की 7 प्रतिशत ब्याज अनुदान की राशि को सरकार बीज व जरुरत के खाद के रुप में किसान को दें, जिससे किसान पर ऋण का भार भी नहीं पड़ेगा और नकली खाद-बीज के झंझट से मुक्ति भी मिल सकेगी। एवं सरकार पर भी कोई विशेष भार नहीं पड़ेगा। नहीं तो ऋण माफी या इसी तरह की समस्याओं से सरकार को हर तीसरे चैथे वर्ष सामना करना पडेगा। जहां तक खेती में आधुनिकीकरण की बात है सरकार अब मंहगे उपकरण किराए पर उपलब्ध कराने की नीति पर आगे बढ़ रही है तो यह किसानों के लिए उपादेय सिद्ध हो सकती है। सरकार अपने घाटे को फसल बीमा के दावों में से कुछ प्रतिशत राशि लेकर भरपाई पूरी कर सकती है।  
किसानों के हित में किसान को सस्ता कृषि आदान और फसल का लाभकारी मूल्य यह 2 बाते तय करनी ही होगी। साथ ही फसलोत्तर गतिविधियों में सुधार और मूल्य संबर्द्धन सुविधाओं के विस्तार से खेती किसानी को लाभकारी बनाया जा सकता है। यह नहीं भूलना चाहिए कि इस वर्ष भी विकास दर बढ़ने का प्रमुख कारण खेती किसानी रही है, ऐसे में आंदोलन, आत्म हत्याओं को मुद्दा बनानें एवं हवा देने की जगह पर किसानों की वास्तविक भलाई के लिए कदम उठाना होगा। 

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